Saturday, August 4, 2007

कोई नही आएगा

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कोई नही आएगा

दु:खी होने यू धरती पर, अब कोई नही आएगा,
सदीयाँ बीत जाएगी, पर अब पैगंबर नही आएगा ॥

अमन को नज़रो मे उतारकर, जब निकलोगे चमन से,
न कोई घना जंगल, न आबाद घर नज़र आएगा ॥

इस दुनिया से निकलकर, तू जब 'कयामत' को मिलेगा,
न होगी तुझे कप-कपी, पर न आदर कोई आएगा ॥

वो हँसता-खेलता तेरा दिल, हो जाएगा जब पत्थर,
सरीता बहेगी घर-से, पर मिलने सागर नही आएगा ॥

दु:ख आए तो बस दो-चार तेरे आंगन है अब,
तूफ़ानो से बचाने तुझे कोई लल्कार नही आएगा ॥

दोस्तो! सब मिल बैठके उसे पीलो अभी भी,
जगत का ज़हर पिने, अब कोई शंकर नही आएगा ॥

यू तेज़-तरार गज़ल लिख मत ए 'लिखने-वाले',
दुनिया है यू खोई, कि असर न कोई आएगा ॥

कर दो माफ़ इस 'लिखने वाले' को दुनियावालो,
क्या करे की उसकी लाश उठाने, कोई इश्वर नही आएगा ॥
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