Tuesday, May 29, 2007

चार रास्ते - A love of its own kind

चार रास्ते - A love of its own kind

"सही है यार, एकदम सही कहा तुमने", अतुल बोला।

"दोस्तो...आपुन तो ऎसैच जीता है। कोई टेंशन नही लेनेका, और ये प्यार-व्यार के चक्कर मे नही पडनेका", सुनिल बोल पडा। और इस बात पर सारे इकट्ठा दोस्त एक साथ हँस पडे।

सुनिल के घर आज पार्टी है, और कही भी क्यो न हो, आज-कल सुनिल की प्यार-से दुश्मनी जाहीर-सी है - जैसे 'दिल चाहता है' के आमीर खान साहब थे।

हर कोई बातो मे मग्न थे। हर किसीके पास बहोत कुछ था केहने-सुनने को। कोई किसीको बता रहा था, कि वो कितना बदला-बदला सा लग रहा है, और कोई किसीको केह रहा था के इतने साल हो गए पर वो बिल्कुल नही बदला।

यही होता है, जब दोस्त ९-१० साल बाद 'Reunion' की पार्टी मे मिलते है।

चुटकुले बने अफ़साने, और अफ़साने बने तराने, जिनमे झुम गई वो हसीन शाम, और याद आने लगे वो पुराने दिन... जब सब खुब मस्ती किया करते थे। बाते हो रही थी सबके ज़िन्दगी की.. कुछ बता रहे थे अपने इतने साल के सफ़र के बारे मे। कुछ हसीन पलो के बारे मे हो रही थी बाते... और कुछ यादगार पलो को फ़िर-से जी रहे थे सारे।

थोडी देर मे उन हसीन पलो को रोशन बनाने, शुरू हुआ वो प्रोग्राम, जो शायद सभी 'Indian Party' का अभिन्न प्रोग्राम है...अंताक्शरी।

गाने गाए जा रहे थे, और सुनिल तो हमेशा गाना गाने मे सबसे आगे रहता। भगवान ने उसके साथ भी खुब मज़ाक किया था। गानो का दिवाना सुनिल, खुद गाते हुए थकता न था, पर उसका सुर इतना मधुर था, के सिर्फ़ उसके दोस्त उसे झेल लेते...हमेशा।

और उसके पसंदीता गाने भी क्या थे..."जाने क्यो लोग प्यार करते है","तन्हा दिल, तन्हा सफ़र","तडप तडप के इस दिल","लडकीयो से न मिलो तुम"....और बहोत लंबी लीस्ट है। और उसके सबसे पसंदीता गाने थे, "झोका हवा का आज भी, जुल्फ़े उडाता होगा ना..", "हर घडी बदल रही है रूप ज़िन्दगी.."। इन गानो के बाद हमेशा उसकी आँखे नम हो जाती थी...नजाने क्यो?

शाम धीरे-धीरे ढल रही थी, गुनगुनाते भवरे अब थोडे थक गए थे... 'ब्रेक' ज़रूरी था। और जो सारे दोस्त एक साथ गप्पे लडा रहे थे, वो थोडी देर के लिए बिखरके, एक दो-एक दो के ग्रुप बनाकर, बातो मे उलझकर, शाम के खाने का मज़ा उठाने लगे।

क्रितीका धीरे-से सुनिल के पास आई और उसके आँखो मे घूरने लगी। जब सुनिल ने उसकी तरफ़ प्रश्नचीन्ह-सा चेहरा दिया, तब जाके वो बोली।

"क्या रे सनी, तू मोपेड-से 'blazing bike' कबसे बन गया?", क्रितीका बोली। 'सनी' सुनिल का प्यारा नाम था। सब उसे यही नाम से बुलाते थे, उसके प्रोफ़ेसर भी।
"ए सनी, तुम बहोत बदल गए हो। तुम्हे पहचानना मुश्किल हो गया है।"

"क्यो? मे तो वही 'oldwalla' सनी हूँ... जो तुम्हारी लंबी चोटी खींचकर भाग जाता था। अब तुमने 'pony-tail cut' कर दिया, तो मे क्या कर सकता हूँ?", यू बोलकर सनी मुस्कुराया।

"नही रे! बात ये नही, यकीन नही आता की तुम्हारी प्यार के बारे मे सोच कुछ अलग ही हो गई है। वो सनी, जो लडकीयो की बाते, थके बिना करता था.... उसे अचानक प्यार मे बेवफ़ाई दिखने लगी? बात कुछ हज़म नही हूई दोस्त।"

"अरे वो? वो तो एसे ही... मे तो मज़ाक-मज़ाक मे यू कुछ गाने गा लेता हूँ, नगमे गुनगुना लेता हूँ।"

"हे सनी, मे तुम्हे बचपन से जानती हूँ। और हमे तो सिर्फ़ ५ साल हुए है contact छुटे हुए, पर तुम कुछ बदले-बदले लग रहे हो।"

"तुम लडकीयाँ ना, एक बार पीछे पड गए, या शक किया, तो सिर्फ़ भगवान बचा सकता है।"

"सनी बात मत घुमाओ, और जल्दी बताओ, what has brought this change in you? वो लडकीयो को college से Juhu beach के सात रास्ते बताने वाला सनी.... अचानक अकेला क्यो चलना चाहता है? तुम एसे 'anti-love campaign' चलाओ... ये कुछ मानने मे नही आता। बोलो कौन है वो, जिसने तुम्हे इतना परेशान किया, सिर्फ़ नाम बताओ और मे उसकी खबर लेती हूँ।"

"हे क्रीटस! इतना समझलो, अपुन कभी ये प्यार-व्यार के चक्कर मे नही पडता, thats not my world, बोलगा तो...!!" 'क्रीटस' क्रितीका का प्यारा नाम था।

"ए सनी! देखो मे ये मानने को तयार नही की हमे प्यार नही होता। और तुम्हे न हो...ये तो एकदम impossible है। और वैसे भी मेरे हिसाब से प्यार की दो मंज़िल है, एक जिसमे हम अपने प्यार को पा लेते है, और दुसरा जिसमे हम अपने प्यार को नही पा सकते।"

"नही क्रीट्स, एसा नही। ये मत कहना की प्यार मे दो राहे है। हर कहानी की यही दो मंज़िले नही। प्यार के रास्ते मे, चार राहे होती है।"

"अच्छा।?। तो हमे भी बताओ ये कौन-सी राहे है?", अपने हँसी को 'control' करते हुए क्रितीका बोली। क्या करे...सुनिल को समझदारी भरी बाते करते हुए सुना नही था... इसलिए शायद हँस पडी।

"ठीक है, तो सुनो! पहली राह वो है, जिसमे तुम्हारा प्यार जीता है, खिलखिलाता है, हँसता है, खेलता है... एक प्यार जो दोनो तरफ़-से पुरा है। उस प्यार के रास्ते मे खुशी है, और जिन्दगी भर साथ निभाने का वादा है, जज्बा है।"
"फ़िर एक राह एसी भी है, जिसमे तुम्हारा प्यार अधुरा रह जाता है, क्योंकि वो दुसरी तरफ़-से अधुरा है। शायद वो प्यार कभी प्यार नही बन सकता, या शायद वो प्यार अभी एक-दुजे को ज़ाहीर भी नही है... और इसलिए अब तक वो अधुरा है।"
"तीसरी राह कुछ एसी भी होती है, जहाँ लोग अभी प्यार को समझ नही पा रहे। वो प्यार को एक जकडन की तरह समझते है। वो अपने प्यार का एहसास नही कर रहे, क्योंकि शायद उनके सामने किसी और का प्यार अधुरा रह गया था। तात्पर्य ये... की अब तक उनकी प्यार से मुलाकात नही हुई।"

"Interesting Philosophy! तुम एकदम उमदा बोलने लगे हो सनी! एक बूक लिख डालो सनी", ये बोलकर क्रितीका फ़िरसे हँस पडी।
"Well ये तीन रास्तो का तो मुझे पता है, अब ये चौथा रास्ता कौन-सा है जनाब, जिसका मुझे पता नही? मे भी तो जानू, और अगर पसंद आए, तो मे उसपे अमल भी कर लूँगी।"

"नही क्रीटस! भगवान न करे कभी तुम्हे उस राह मे चलना पडे", सुनिल उग्र होके बोल पडा।

"ठीक है, ठीक है, माफ़ी मांगती हूँ कुछ भी बक गई, पर उस राह का एक tour तो दो। मुझे बताओ तो सही आखिर उस राह की क्या खास बात है?"

"क्रीटस, प्यार तब पुरा होता है, जब वो दोनो तरफ़ ज़ाहीर हो! पर कभी-कबार ज़िन्दगी मे प्यार एक ऐसी पहेली बन जाती है, कि जिसका जवाब हम ज़िन्दगी भर नही ढूँढ पाते। कभी-कभी कुछ ऐसा हो जाता है, के हम वक्त के आगे अपना सर झुका देते है।"

"एक minute सनी। मे समझ गई तुम क्या केह रहे हो। शायद तुम उन लोगो की बात कर रहे हो, जिनके लिए प्यार एक मज़ाक है, वो प्यार जो उसे हर पाँच लडकीयों मे से एक के साथ हो जाता है। या उन लोगो के लिए, जो प्यार करते तो है, पर डरते है, और ज़माने के सामने झुक जाते है। पर दोस्त, वैसे प्यार को मे प्यार नही कहती। मेरे हिसाबे से तो वो प्यार ही नही होता।"

"नही क्रीटस, जो तुम सोच रही थी, मेरा वैसा मतलब नही था।"

"तो? फ़िर क्या कहना चाहते हो तुम?"

"मे उस पागलपन की बात नही कर रहा था। प्यार की परिव्याख्या तभी पुरी होती है, जब वो दोनो दिलो को मिला लेता है। और दोनो दिल तभी मिलते है, जब वो एक दूसरे का नाम लेके धडकना सिख जाए। और यहींपर.... कभी-कभी वक्त जीत जाता है।"

"यहीं कभी-कबार किसी एक दिल को 'ज़िन्दगी' का साथ नही मिलता। कुछ जाहीर करने से पहले जब ज़िन्दगी किसी एक का साथ छोड दे... तब दूसरा दिल ज़िन्दगी भर एक भवर मे फ़स जाता है। उसे पता नही उसने प्यार खोया है... या पाया है। उसे पता नही की उसका प्यार ज़िन्दा है, या वो कभी था ही नही। उसे पता नही, की उसका प्यार पुरा है...या अधुरा।"

"प्यार अमर है, पर हम इन्सान है। हम प्यार कर सकते है, पर ज़िन्दगी और वक्त पर हमारा कोई बस नही। कुछ एसे लोग होते है जो वक्त, ज़िन्दगी और दिल के इस सबसे बडे सवाल की गुथ्थी मे हमेशा भटकते रहते है। न वो प्यार मे जी सकते है, और न प्यार मे मर सकते है।"
"वो यही जताते है, कि उन्हें प्यार नही। क्योंकि शायद उन्हें प्यार कभी मिलेगा ही नही। वो प्यार मे हँस सकते है, वो प्यार मे रो सकते है.... क्योंकि उन्हें पता नही की उनका प्यार पुरा है, या अधुरा। उन्हें प्यार करने की हिम्मत ही नही है। क्योंकि उनका प्यार आने के पहले ही चला गया... जीने के पहले ही अमर हो गया। पर वो जाते-जाते भी उस दिल के लिए इतने सवाल छोड गया, कि वो ज़िन्दगी-भर कभी प्यार नही कर सकता।"

शाम ढलने को थी। सारे दोस्त अब धीरे-धीरे वापीस चल रहे थे। क्रितीका भी चली गई, उसकी आँखो मे इतने सवाल दिख रहे थे.... पर उनका जवाब सुनिल-से उस दिन मिलना मुश्किल था। वो तो सोच रही थी, शायद उसके जवाब वो फ़िर-से सुनिल से ले पाएगी भी या नही, ये उसको नही पता।

रात को जब क्रितीका ने "Good nite SMS" भेजा तब एक छोटा-सा सवाल पुछा। "ए सनी, फ़िर पुछ रही हूँ... बता कौन थी वो, जिसने मेरे 'लाडूडो'(Gujju word for meaning 'dear') को एसा दर्द दिया है?"

जवाब मे सनी क्या लिखता.... बस एक चार-पंक्ती लिख डाली....


"खुशनसीब है वो.. जिसे मिला अपना प्यार,

बदनसीब है वो.. जिसे मिले बेवफ़ाई,

जो न नसीब को.. न दिल को दोश दे पाया,

सिर्फ़ उसे रास आती है...ये तन्हाई.." ॥२॥


Good night my dear friend and sweet dreams...!!

रात हो गई है। अंधेरा छाया है। सुनिल ने radio FM लगाया...और गाना आ रहा था।

"चिट्ठी न कोई संदेस, जाने वो कौन-सा देस..जहाँ तुम चले गए...!!"