Tuesday, October 23, 2007

कुछ नई चार पंक्तीयाँ

कुछ नई चार पंक्तीयाँ


१. दिल मे गेहरा ज़ख्म आज बैठा है यू...
बस जाम-के-जाम खर्च किए जा रहे है !!
तुटे हुए सपने, घूल रहे है हर गिलास मे,
होठो पे रख प्याली, बस पिए जा रहे है..!!

२. इस दिल मे बसकर, कितने आए-गए क्या जाने,
संभलने-से पहले ही ये दिल तोड दिया जाता है..!!
यूही नही मूह मुडता उस मैखाने की तरफ़,
वहाँ हर शराबी अपनी दास्ताँ सुनाने फ़िर आता है..!!

३. इतना दर्द भरा है तेरे उस दामन का साथ..
पता होता तो हम अपनी रुह बचाके रखते..!!
तुझे भूलाने मे शराब इतनी पीनी पडेगी मुझको..
पता होता तो शराब खाना ही जमाके रखते..!!

४. तुझसे मिलते नही हम तो अच्छा होता सनम...
प्याले खर्च होते है, अब तुम्हे भूलाने के लिए!!
क्या करू के हर वक्त, गम होता भी तो नही...
अब बहाने ढूंढते है हम, महफ़िल जमाने के लिए!!

५. कुछ एसा सफ़र कटाँ, के याद बनके रेह गए..
आपका साथ यू रहा, के हम आबाद बनके रेह गए..
कुछ यादे यू बूनी, के खुशी के मैखाने मिले हमे,
ये पल यू छू गए, के जीने के बहाने मिले हमे!!!

- When my heart beats,
Chirag

1 comment:

Sari said...

No comments... just speechless.. marvelous piece of literature..keep writing.. Hindi ke sahithy mein cha jaoge aap...